मेरे मरने की फ़िक्र नहीं मुझको,
फिर क़ब्र की क्यों फ़िक्र लगी है सबको।
मरने पर मेरा नाम पुकारा जा रहा मस्ज़िद में,
क्यों मेरे वजूद को लाश बनाने की फ़िक्र लगी है सबको।
ये कैसा इंतेज़ाम है आख़िर, सब दुल्हन मुझे बना रहे,
मेरे बदन पर क़फ़न लपेटने की फ़िक्र लगी है सबको।
पहले हँसते थे मेरे ज़िंदा वजूद को देखकर,
आज रोने की कौन सी फ़िक्र लगी है सबको।
अफ़सोस में हैं सब के शाम ढलने को है,
ज़िक्र में मेरी मैय्यत की फ़िक्र लगी है सबको।
ये हुजूम है कैसी मेरे अंजुमन में आज देखो,
मेरे बाद मेहमानों को सुलाने की फ़िक्र लगी है सबको।
ये घड़ियाँ रुखसती की अजीब क़हर ढा रही ,
मेरे बेजान जिस्म को जमीं पर लेटाने की फ़िक्र लगी सबको।
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