दुआ का बाज़ार...
बज़्म-ए-दुआ का मंज़र कल देखा मैंने,
फटी चादर में लिपटी अमीरी देखा मैंने।
मैंने सोचा चंद सिक्कें उछाल दूँ लेकिन,
ग़ुरबत-ए-हुजूम का बाज़ार देखा मैंने।
सोचा सजदे से पहले इनकी दुआ बटोरूँ,
लेकिन दुआओं पर दाम लगे देखा मैंने।
रेवड़ियों की एक थैली मैंने सामने रख दी,
उन टुकड़ों को बेईज्ज़त होते देखा मैंने।
दुआ पढ़कर जब निकला ख़ुदा के घर से,
मायूसी के लिबास में लालच देखा मैंने।
इस बार बेशर्म सिक्कों को उछाल दिया,
फ़िर सतरंगी दुआओं का नज़ारा देखा मैंने।।
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