न दिखे कहीं आसार और हो जाना तुम बरखा रानी।
खिड़की से देखूँ बाहर और बरस जाना तुम बरखा रानी।
हौले से ठंडी हवा छू जाए मुझको हो जाऊँ फिर मैं बैचेन,
और लेकर तुझे हाथों में महसूस करना चाहूँ बरखा रानी।
न रोक सकूँ मैं उस समय कदमों को अपने घर के भीतर,
दौड़ा चला आऊँ तेरी बरसती फुहारों में ओ! बरखा रानी।
तू मुझे बचपन की तरह पचपन की उम्र में भी पसंद है,
बचे ख़्वाबों को अब पूरा करने का वक़्त है बरखा रानी।
दूर हो गया मैं ज़िंदगी की रोज़ाना की आपा-धापी से,
एक बच्चा जो ज़िंदा है मुझमें उसे जगा लूँ मैं बरखा रानी।
उम्र, ज़िम्मेदारियाँ और ये कामकाज अब मुझे न रोके,
बस मस्त-मगन हो गाऊं,नाचूं,सबको नचाऊं बरखा रानी।
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