1 जुलाई
स्कूल खुलने का दिन ।
नई क्लास,
और बड़े होने का इल्म ।
हमारे बचपन के दिन थे ये,
कितना कुछ बदल जाता था
इस एक जुलाई को ।
कक्षा, कॉपी और किताबें,
सब नई हो जाती थीं इस दिन ।
स्कूल में कुछ नये विद्यार्थी आते,
तो कुछ पुराने दूसरी स्कूल में पहुंच जाते ।
असेंबली का माहौल वही रहता,
बस हमारी पंक्ति की जगह बदल जाती थी ।
पिछले साल में पढ़ाई में किए आलस्य को
इस साल छोड़ देने के सारे वादे मन में किए जाते ।
और पहले ही दिन से पढ़ाई में लग जाने का लक्ष्य,
अगले दो - चार दिनों में ही फुस्स हो जाता करता था ।
न जाने अब स्कूल के बच्चों के क्या हाल हैं,
निश्चित ही कहीं कुछ बेहतर हुआ है,
तो कुछ चीजों में कमतरी आई है
पर हमारे जमाने के स्कूल
हमारे दिल में समाये हैं ।-
हमने भी टटौले थे बचपन के बिछौने
वो सौंधी सी खुशबू वो मिट्टी के खिलौने
पानी में छपाक के किस्से सलोने
माँ की डांट से पापा के पीछे छिप जाना
फिर रोते हुए माँ ही चिल्लाना
भाई बहन के लिए सबसे लड़ जाना
दादा की लाड़ली होने का रौब ज़माना
वो अपनी टोलि का सरगना बन जाना
माँ के दुपट्टे से दुल्हन का लिबास बनाना
पापा के कोर्ट में खूब इतराना
भाईयों के काँधो पर बैठकर खुश हो जाना
बहन के साथ वो घूमना घुमाना
आज बहुत याद आता है
बचपन का अफ़साना-
गाँव में आती है दोपहर के बाद शाम,
बचपन में होती है दोपहर के बाद शाम
गेंद के मेले के पीछे भागने की थकान,
नदी किनारे में डुबकी और फूलों की मुस्कान
धूल में लिपटी हँसी और आँखों में चमक,
लुका-छिपी का खेल और बेफ्रिकी की झलक
मनमानी और मनमर्जी के दिन और रात,
सुकुन पहुंचाती हुई दादी और नानी की हर बात
पेड़ों की फुनगियों पर सपनों की पतंग,
हर शाम थी कहानी, हर सुबह कोई रंग
काँच की गोलियों में जादू था भरा,
हार या जीत से कोई फ़र्क नहीं पड़ा-
Childhood ( Rain Day ) 🌧️
ਜੱਦ ਵੀ ਮੀਂਹ ਪੈਂਦਾ ਯੇ
ਬਚਪਣ ਦੀ ਆਉਂਦੀ ਯਾਦ ਕੁੜੇ👼
ਨੰਗੇ ਪਿੰਡੇ ਹੋਣਾ
ਮੀਂਹ ਦੇ ਵਿਚ ਨਹੋਣਾ 🏊♂️
ਰੁੱਸੇ ਯਾਰਾ ਨੂੰ ਮਨੋਣਾ
ਬੜਾ ਚਾਅ ਹੋਣਾ 😍
ਜਦੋਂ ਆਉਂਦੀ ਸੀ ਬਰਸਾਤ ਕੁੜੇ 🌧️
ਜੱਦ ਵੀ ਮੀਂਹ ਪੈਂਦਾ ਯੇ
ਬਚਪਣ ਦੀ ਆਉਂਦੀ ਯਾਦ ਕੁੜੇ🤗
ਬਚਪਣ ਦੀ ਆਉਂਦੀ ਯਾਦ ਕੁੜੇ❣️-
Childhood's laughter echoes free,
Innocent hearts, full of glee.
Honest and loyal, pure and bright,
Vulnerable to life's darkest night.
Adolescence brings its own test,
Learning from mistakes, we find our best.
Minds and hearts, easily swayed,
Shaping our path, day by day.
These early years, a foundation lay,
For adulthood's maturity to sway.
Experiences shape, mold, and refine,
The person we become, in time.-
Domestic trauma
When voices rise, my heartbeat races,
Not at the pitch, but at the places
It takes me back, where love would slip
Through trembling hands and tightened lips.
I take an oath with every cry,
To never let my silence lie.
I'll speak, but not like thunder's roll
I'll fight with softness in my soul.
They shout not to be cruel or mean,
But trapped in wounds they’ve never seen.
Dad says she thinks all is wrong again,
Mum says he won't try to comprehend.
And after storms, the tears arrive
Two broken hearts, still half-alive.
He quiets down, she speaks some more,
Each aching is louder than before.
I used to stand between the flame,
Call out peace and take the blame.
But now I know: to heal, I must
Step back from battles built on dust.
They're tethered not by want, but need,
By bruises neither one can read.
And I, their child, have learned too well
The sound of love that sounds like hell.
So here I sit, both near and far,
A quiet witness to the spar.
But deep inside, I plant a vow
To love with calm, to learn the how.
And if someday I raise my voice,
It will not be to drown a choice.
It will be soft. It will be true.
A language pain once never knew.-
“मैं बच्चा हूँ, पर बोझ से टूटा हूँ”
✍️ Alfaaz e Vijay
मैं बच्चा हूँ, पर हँसना भूल गया हूँ,
खिलौनों की जगह डर से खेलने लगा हूँ।
स्कूल की गलियों में तन्हा सा चलता हूँ,
दोस्ती की जगह तानों से डरता हूँ।
कभी माँ ने कहा – “औरों जैसे क्यों नहीं?”
पापा बोले – “नाम रोशन कर नहीं सका तू कहीं।”
न नंबर अच्छे आए, न किसी ने गले लगाया,
बस हर रोज़ मेरे होने पे सवाल उठाया।
कक्षा में जब कोई हँसा, मैं रो पड़ा भीतर से,
क्योंकि मुझे पता था — वो हँसी है मेरे ऊपर से।
मोबाइल की स्क्रीन बनी मेरी हमराज,
जहाँ किसी को मेरी चीख नहीं लगती आवाज़।
मन में घुलती जा रही थी एक चुप सी पीड़ा,
जिसे ना माँ ने जाना, ना पापा ने सुना धीरे-धीरे।
एक दिन कमरे में दरवाज़ा बंद कर लिया,
ज़िंदगी से रिश्ता हमेशा का छुपा लिया।
मेरी कॉपी के आख़िरी पन्ने पर सिर्फ़ इतना लिखा था –
"मैं बच्चा हूँ... बस थक गया था..."-
किसी भी बच्चे के जीवन के शुरुआती साल उसके समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये साल उसके भविष्य के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण की नींव रखते हैं। कई प्रमुख स्तंभ इस नींव को सहारा देते हैं। बच्चों को हिंसा, शोषण, बाल श्रम और उपेक्षा से सुरक्षा की आवश्यकता होती है। एक स्थिर, सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण बहुत ज़रूरी है। देखभाल करने वालों या माता-पिता को बच्चे की भावनाओं और संकेतों को समझना चाहिए और उनका जवाब देना चाहिए। संचार, प्यार और सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है। बच्चों को व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में सिखाना, जैसे नियमित रूप से हाथ धोना, नहाना और दाँत साफ करना, बीमारियों को रोकने में मदद करता है और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देता है। मुख्य स्तंभों से परे, बच्चों में छोटी उम्र से ही कुछ आदतें और मूल्य डालना ज़रूरी है।बच्चों को समय का महत्व और इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना सीखना चाहिए। इसमें अध्ययन, खेल और आराम के लिए विशिष्ट समय आवंटित करना शामिल है, जो अनुशासन को बढ़ावा देता है।
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कागज के फूलों से खुशबु, चमन में बहार नहीं आतें।
रौनक आती नहीं महफ़िल में,जबतक यार नहीं आतें।
यूं तो लोग हजारों है, हमारे इस दौर में।
पर जिनके साथ मस्ती थी अब ओ यार नहीं आतें।।
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