ये जो + दबाने पर लपक कर आता है, उस कीबोर्ड को समझाओ कि लफ्ज़ को इतनी जल्दी नहीं इस डिजिटल काग़ज़ पर तैरने की। जल्दी है तो उसके इनबॉक्स में उतरने की और वहीं रहने की, हमेशा, इस आस में कि कभी यूँही किसी रात को नींद ना आने पर उन्हें पढ़ गलती से typing और उसके सामने बेचैन करने वाले तीन बिंदु ... दिख जाए। मानो एका-एक सरपट एक जवाब आये, ठहरे, सहमे और रुक जाए, फिर बैकस्पेस की बारीक़ धार उसे छिल जाए। और मैं।
अरे भाई मेरा क्या? मैं इत्मिनान से इस बुलबुले से चुलबुले कीबोर्ड को देख, कुछ लफ्ज़ जो उस चैट विन्डो में मौजूद होने की खुशी गवाँ बैठे हैं, उन्हें बटोरता हुआ यहाँ, इस कोट के चार दीवार में उन्हें एक और रात अपना सर टिका सो जाने की दरख्वास्त कर सो जाऊंगा। जैसे आज।
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