कमीज़ तेरी पहन जब मैं
"छोटा जज" बन जाती थी़..
"आॅर्डर-आॅर्डर" कह-कह कर,
तेरा सिर दुखाती थी..
पता नहीं था तब खुद को,
इतना खुश क्यों हो जाती थी?
कान में ज़ोर से चिल्ला
सुबह-सुबह जगाती थी..
"भैय्या प्लीज़ दिला दे" कह कर,
हर बात मनवाती थी..
पता नहीं था तब खुद को,
इतना खुश क्यों हो जाती थी?
अब जो समझी हूँ मैं सब कुछ
तेरे नाम यह पैगाम करूँ..
परी थी तेरी, आज भी हूँ
इस सच पर रोज़ गुमान करूँ
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