बैठे थे,चार लोग,
बेवजह चाय में चीनी रहे थे घोल,
माँ भी आज थोड़ी अशांत थी,
पापा की खामोशी भी आज बेजान थी,
भाई की भी आज भूख गुमनाम थी,
मेरे मन की दुविधा भी नहीं आज आम थी
पहली बार घर से बाहर जा रहा था,
मंजिल की खोज में,छोड़ अपने अपनों को,
पुरे करने थे खुद और उनके सपनो को,
आज विदाई की वही घडी थी,
इसलिए आज नाश्ते की टेबल भी शांत पड़ी थी
शांत पड़ी थी.
-©Saurabh Yadav
-