अंधी खुशियों के नाम पे गम बनाते हैं ,
इनसे दूर रेहना , ये लोग बम बनाते हैं ,
बड़े अजीब लोग है यार तुम्हारे शेहर के ,
मंदिर-मस्ज़िद ज्यादा स्कूल कम बनाते हैं ,
सारी दीवारों पे हम लोग सच लिख देंगे ,
मेरे कुछ यार-दोस्त हैं जो कलम बनाते हैं ,
जिन्होंने अँधेरे में पूरा शेहर ही फूंक दिया ,
अजीब बात है वो पेशे से मरहम बनाते हैं ,
कबतक रखोगे अपने दिलों में नफरत ,
सुनो , हम मोहोबत्त की नज़्म बनाते हैं ,
इंसान ही इंसान का दुश्मन है , लानत है ,
हमसे अच्छे हैं कीड़े जो रेशम बनाते हैं ।
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