फिर से गिरूं मैं और तू अपने आंचल से
मेरे आँसू पोंछे, ऐसी चोट की चाहत है
मां बुला ले मुझे, तेरी गोद की चाहत है
फिर से हठ करूं उसी बचपने में मैं
कि तालाब के सफ़ेद सरोज की चाहत है
मां बुला ले मुझे, तेरी गोद की चाहत है
मेरी हर इच्छा बिना बोले समझने वाली
तेरी नज़र, तेरे अनंत बोध की चाहत है
मां बुला ले मुझे, तेरी गोद की चाहत है….
~ स्वराज
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