बने तो होंगें... ये शब्द भी कभी,
रहते होंगें वो खुद में गुमसुम कहीं,
भावनाएं रही होंगी अनछुई कभी,
छुआ भी होगा उन्हें किसी ने कभी,
'ग़ज़ल' यूँ तो कोई बनती भी नहीं,
दिन वो दिन आज का रहा ही होगा,
है इस बात का मुझको है पूरा यकीं,
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ हर लफ्ज़ ग़ज़ल,
शख्सियत ऐसी कोई यूँ बनती नहीं,
कर रहा ग़ज़ल हर शख्स़ इक कोई,
पर, ग़ज़ल ऐसी कोई बनती भी नहीं,
दिन वो दिन आज का रहा ही होगा,
भावनाओं को भाव मिला भी होगा,
अर्थ ने मर्म से मुहब्बत... करी भी होगी,
शब्दों ने इक साँस सुकून भरी भी होगी,
कलम ने हवाओं से मुहब्बत करी भी होगी।
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