शज़र की छाँव में मैं बैठा था
टुटे पत्तों के पास मैं बैठा था
कोपलों में बचपन,हरे रंग में जवानी
ढेर था जहाँ,वहीं मैं बैठा था
कुछ अधरंगे,कुछ एकदम सुर्ख,कुछ ताजे
वहीं कहीं गुमसुम सा मैं बैठा था
उठाया एक टूटा पत्ता,उसी ढेर से
शज़र से जो नीचे गिर बैठा था
(If u have time then please read full piece in description)
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