सोचा आज की चलो कुछ लिखते हैं
एक अरसा सा हो गया था
जज्बातों को अल्फाज़ो में बुने
फिर सोचा,
चलो उसको सोचते हैं जिसने इस जहां को सोचा
एक नाकाम सी कोशिश करते हैं
क्योंकि उसकी खूबसूरती तो बयां हो ही नहीं सकती
कितना खूबसूरत होगा वो खुदा
जिसके नूर से दुनिया चलती है
जिसका नूर सुबह धूप बन के बरस जाता है
और रात चाँद तारों की आगोश में गुजर जाती है
नदियों की कलकलाहट, भवरो का गुंजन, तितलियाँ, मोर
बेवक़्त बारिश, बिजली का गरजना, ये खुला आसमां
ये बेवजह हवाए, वो फूल, वो चाँद और तारे..
कितना खूबसूरत है ना ये सब
अरे,
उसकी ख़ूबसूरती में मैं इतनी डूब गयी
कि उसकी अनोखी रचना तो भूल ही गयी
"मानव"
तेरा तहे-दिल से शुक्रिया ऐ रब तूने मुझे इंसान बनाया
दुनिया दिखाई सुख-दुःख के रंग अपने-पराये, ज़िन्दगी का हर पड़ाव
वो नन्हा सा प्यारा सा बचपन, खिलखिलाती सी ये सारी उमर..
तेरा शुक्रिया ऐ रब तेरा शुक्रिया
"तू नूर है तू खुदा है, तुझसे ना कोई जुदा है,
तेरी रहमत है मेरी ज़िन्दगी, इसलिए मेरी ज़िन्दगी ही मेरा खुदा है "
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