ईश्वर की ये बात नहीं, न अल्लाह का पैगाम है ये
न गुरबाणी ये सिखों की, न जीसस का अरमान है ये।
मंदिर टुटा, मस्जिद टुटा और टूट गया ये देश मेरा,
इंसान के उपर मज़हब को रखा उसका अंजाम है ये।
कभी भाई-भाई से रहते थे, आज उन रिश्तों से मुँह मोड़ लिया,
कभी दुःख-सुख बांटा करते थे, आज बातें करना भी छोड़ दिया।
माना माँ मेरी और कोई, माना माँ तेरी और कोई
इक माँ है सबकी भारत माँ, जिसका बेटा हर एक कोई।
इस माँ के लाखों बेटों ने देश की खातिर जान दिया,
कीमत क्या देंगे हम जानों की, जब हमने न सम्मान दिया।
हम सब की खातिर वीरों ने अपने जान की कुर्बानी दी,
धर्म, जाती और मज़हब छोड़ इस देश के नाम जवानी दी।
आँखों में आँशु याद बनाकर उनकी माएँ भी जिन्दा है,
फिर भी मज़हब का खेल चले, हम अब भी न शर्मिंदा हैं।
क्या धर्म तेरा, क्या धर्म मेरा, क्या बात सिखाई मज़हब ने,
हम इंसानो से भी बढ़कर क्या कोई चीज़ बनाई है रब ने।
मजहब के नाम पे न जाने क्यों देश को बाँट रहे है हम,
बस नाम का अंतर पाकर ही, अपनों को काट रहे है हम।
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