मां के आंचल में रहते हुए वो बेटा चलना सिख गया हाथ में लेकर बंदूक वो बेटा लढ़ना सिख गया सर पर बांधकर कफ़न वो बेटा मरना सिख गया तिरंगे में लिपटकर वो बेटा देश के लिए शहिद होना सिख गया !
तिरंगे की शान में वो जवान अब तैय्यार हैं हर मुश्किलों के सामने वो पहाड़ सा तैनात हैं जंग का मैदान हो या हो कोई परेशानी यहाँ जीत उसकी रग में है वो करता है सम्मान सदा
भेद भाव सब छोड़ कर साथ चलना जानते हैं खुशियों में वो खिल खिलाना गम को भी पहचानते हैं मना रहे सब गणतंत्र दिवस को भूलते ना बलिदान हैं याद रखते हैं सभी को जो अब हमारे ना साथ हैं
करते हैं सुरक्षा हमारी चाहते वो खुशहाली हैं प्राण त्याग देते सदा वो मुल्क की पहरेदारी है सीखना है तो सीख लो तुम त्याग और बलिदान को उठ खड़े हो चलो सभी यहां अब तिरंगे के सम्मान को
कहीं उस बूढ़ी माँ का सहारा टूटा है तो किसी पतिव्रता का सिंदूर छूटा है पापा की याद में वो अपने, आज आँख भिगोया है तो किसी की आँखे सूख गईं, दिल अन्दर-अंदर रोया है
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