बेशुध सी हूं मैं, अपने ही ख्यालों में।
एक अजब सा रंज है; मेरे ही मन के
जवाबों और सवालों में। सवाल जिनको
ढूंढ़ते-ढूंढ़ते मन भी, एक कशमकश में पड़ सा गया है।
हां मिलेंगे, कभी ना कभी जवाब
इनके ये कहकर, मुझसे ही अड़ सा गया है।।
न जाने क्या खोने का डर है इसे;
जब कुछ पाया ही नहीं अब तक।
बस अब और नहीं सहा जाता; न जाने ये
माजरा यूं ही चलेगा और कब तक।
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