चली जो नंगे पांव कभी धूप में, तेरी याद बहुत मुझे आती थी,
जलते जो पैर किसी और के उसकी माँ जब सहलाती थी,
तू धूप में है छांव सी, गर्मी की है तू सांझ सी,
कि उमस है कितनी मन के भीतर ,
ना मैं कह पायी ना तू ये कभी जान सकी,
अंजान हूँ तेरे प्यार से, तेरी याद बहुत सताती है,
मैं भी तो तेरी बेटी हूँ तू मुझको क्यूँ तड़पाती है,
जरा जान मेरा हाल-ए-दिल, किसको ये जाकर
सुनाऊँ माँ, रख तेरी गोद में सिर अपना खुद रोऊँ
संग तुझे रूलाऊं माँ,
छलनी है दिल जख्मों से कि कोई दवा इसे भर सकती नहीं,
मुझे कितनी जरूरत है तेरी माँ, ये बात मैं तुझसे कह सकती नहीं,
ये बात मैं तुझसे कह सकती नहीं!
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