Mera Chand
पास होके भी दूर रहेता चाँद,
किस के ग़म में घटता चाँद ।
सुबह का दर्द भरा था अभी,
रात हुई और निकला चाँद ।
कहाँ-कहाँ से ये गुज़रा होगा,
हर-सू चाँदनी बिखेरता चाँद ।
ख़्वाबों में वक़्त बसर करता,
न जाने किसको ढूँढता चाँद ।
मेरी आह पर जाग उठता है,
नींद का कितना कच्चा चाँद ।
किस शिद्दत से मेरे चहेरे को,
बस देख रहा वो भोला चाँद ।
सितारों के बीच रहकर भी,
क्या ऐसा तन्हा होगा चाँद ।
रात बादलों की चादर ओढ़े,
वो देख रहा है सपना चाँद ।
दूर से कुछ बोल रुख़्सत हुआ,
वो प्यारी सूरत हीज्र का चाँद ।
आज तन्हा-तन्हा फिर रहा है,
डूबे इश्क़ में अपने सच्चा चाँद ।
आशिक़ रात काफ़ी हो चुकी,
शायद सोया होगा मेरा चाँद ।
आशिक़ ❧
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