काग़ज,कलम है पर लिखने के लिए अल्फा़ज नहीं,
सिसकियाँ लिखना चाहती हूँ जिनकी आवाज नहीं।
कई ख्याल, कई तलब,और आरजूयें,जुस्तजू रहीं है,
इतना समझ ले,तेरा हमसाया ही मेरा हमराज नहीं।
चाहे बदल के लिबास आजमाँ लो मेरे किरदार को,
मौसम की तरह रंग बदले ऐसा तो मेरा मिजाज नहीं।
कभी सोचा ही नहीं आगाज का अंजाम क्या होगा,
मेरे लिए किसी भी मंजिल का मकाम दूरदराज नहीं।
बिखेरी है चांदनी सी आँचल की छाँव मैंने आसमाँ में,
अब किताबों में छुपाऊँ ऐसा भी मेरा कोई राज़ नहीं।
और कितनी बार दोहराऊँ के यह पूनमरात बेदाग है,
है इक नीले आसमाँवाला और कोई मेरा सरताज नहीं।
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