तुम पर कुछ लिखना था मुझे
कुछ लिख पाई फ़िर सब थम गया
,,,,,हाँ सब थम गया......
कैसे लिखती वो एहसास जिनका ना तो
कोई रूप है ना रंग ना ही मार्ग
ये तो बस कल-कल बहते झरने से
बहते चले हैं,,
वो एहसास जिन्हें थामने की कोशिश में
मैं खुद को भूलकर तुम्हारी हो जाती हूँ
कितना मुश्किल है तुम्हें अब लिखना
जब से तुम जिक्र में कम फ़िक्र में ज्यादा रहने लगे हो
ये एहसास मानो ,, तुम्हारे कितने ही
पास लाते मुझे
फिर वो भय जिसमे तुन्हें खोने का
तुमसे अपना हाथ छूट जाने का संकोच होता
वो मानो अत्यंत कठोर कारणों से
मुझे भटका देते उस प्रेम से जो मुझे हो गया है
तुमसे!!!
और ये भटकाने की कोशिश अब कामयाब कहाँ होती
कैसे लिखती उन एहसासों को जो
चुपके से तुम्हें ही बस तुम्हे ही सोचने लगते हैं!!
ना चाहते हुए भी बस आवारा हवा जैसे
तुम तक जाने को बेचैन रहते हैं ©शताक्षी शर्मा
उफ़्फ़,, ये एहसास!!
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