QUOTES ON #YQPEEPS

#yqpeeps quotes

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20 FEB 2017 AT 21:29

Only the wise will understand that

even the quenched is an art.

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25 DEC 2018 AT 23:10

नारी हूँ
धरा का नूर हूँ
गगन की हीर हूँ
मैं सबकी जरूरत में शामिल नीर हूँ
नारी हूँ धरा का नूर हूँ
अपनी मस्ती में चूर हूँ
जिम्मेदारियों की सबसे ऊँची शाख हूँ
अपनी हर ज़िम्मेदारी निभाती हुई मैं चूर्ण राख हूँ
मैं शक्ति हूँ,
हृदय में बसी भक्ति हूँ
मैं हर एक नर की पहचान हूँ
मैं हर घर की हया हूँ
हर घर का पहला मान हूँ
मैं रकीबों के लिए काल हूँ
अपनों के लिए मंजिल तक पहुचाने वाली चाल हूँ
मैं हूँ तेजस्वी, सुन! मैं माया का जाल हूँ
मैं कभी घायल हूँ
कभी छनकती पायल हूँ
मैं हर पीड़ का हिसाब हूँ
मैं तज़ुर्बों से भरी किताब हूँ
मैं हवन की पवित्र अग्नि हूँ
मैं किसी की संगिनी हूँ
मैं ही पवित्र हूँ
मैं ही मैली हूँ
मैं गीतों में बसता साज़ हूँ
मैं लाज हूँ कभी तो कभी बेलाज़ हूँ
मैं बिखरा हुआ फूल कभी
कभी पत्थर सी कठोर हूँ
मैं शांति की परिभाषा
और कभी अन्याय के ख़िलाफ़ मचता शोर हूँ

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5 JUL 2019 AT 11:30

अंतिम साँस जहाँ त्याग दूँ वो दर तुम्हारा हो
तुम्हारे चरणों में रहूँ हर क्षण मेरे मुख से जो निकला वंदन तुम्हारा हो!!

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31 AUG 2019 AT 1:40

तुम पर कुछ लिखना था मुझे
कुछ लिख पाई फ़िर सब थम गया
,,,,,हाँ सब थम गया......

कैसे लिखती वो एहसास जिनका ना तो
कोई रूप है ना रंग ना ही मार्ग
ये तो बस कल-कल बहते झरने से
बहते चले हैं,,
वो एहसास जिन्हें थामने की कोशिश में
मैं खुद को भूलकर तुम्हारी हो जाती हूँ
कितना मुश्किल है तुम्हें अब लिखना
जब से तुम जिक्र में कम फ़िक्र में ज्यादा रहने लगे हो
ये एहसास मानो ,, तुम्हारे कितने ही
पास लाते मुझे
फिर वो भय जिसमे तुन्हें खोने का
तुमसे अपना हाथ छूट जाने का संकोच होता
वो मानो अत्यंत कठोर कारणों से
मुझे भटका देते उस प्रेम से जो मुझे हो गया है
तुमसे!!!
और ये भटकाने की कोशिश अब कामयाब कहाँ होती
कैसे लिखती उन एहसासों को जो
चुपके से तुम्हें ही बस तुम्हे ही सोचने लगते हैं!!
ना चाहते हुए भी बस आवारा हवा जैसे
तुम तक जाने को बेचैन रहते हैं ©शताक्षी शर्मा

उफ़्फ़,, ये एहसास!!

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25 JUL 2019 AT 14:58

जिस रोज़ उसकी भक्ति में डूबकर मैं रोती हूँ
स्पर्श करता है कृष्ण मुझे मैं उसके कितने करीब होती हूँ

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5 JUL 2019 AT 3:19

चन्द्रमा आईना ज्यों त्यों देख कर आये
मन ही मन ऐसे वो मुस्कुराए
भीतर ही विषादों को हौसला बनाकर
दूसरों को हँसाये
इसलिए तो वो ब्राह्मण पुत्र पुलकित कहलाये
रेशम प्रकृति की डोर से बंधा एहसास उससे
मिलकर इत्र सी महक जाए
अतुल्य मनुज को विशेष ही कोई पाए
चराग वो घर-आँगन का जब माथे पर तिलक लगाए
समस्त पृथ्वी की सुंदर-सुंदर कथा ललाट पर आए
नेत्रों में जिस पुरूष के स्त्री के लिए आपार सम्मान पनप जाए
वो तुमसा गुण वान मर्यादित पुरुष बन जाए
जो कदापि वजह ना बने किसीके अश्रुओं की
हर क्षण खंडों में सुख को फैलाये
जगत में धर्म का अर्थ स्वयं वही धर्म बतलाए
अधर पर जिसके गलत वाणी ना जगह ले पाए
वो सागर में सरिता मोतियों सा समाये!!

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