मेरी गोद में एक किताब है
पन्ने कोरे, जर्जर, सीले थोड़े
एक नया शब्द उन पर उभरता है,
अंगुली रखकर पढ़ो, तो ध्यान उसी पर ठहरता है
ये ध्वनि तो कभी सुनी नहीं,
ये बनावट, ये लिखावट कभी दिखी नहीं
भीगे बादलों की अनुगूँज बनकर टहलता है
भूरे कागजों पर कोपलों-सा फूटता है,
संदेश यह बीजवपन का लगता है
अध्याय आरंभ अब इसी से हो
ग्रंथ बने तो यही मंगलाचरण हो,
नया शब्द ये मैं हूँ।
इसका उच्चारण मेरे ह्रदय का नाद,
लिपि मेरी काया है, अर्थ मेरा सरमाया है,
इसकी रक्षा की मैं उत्तरदायी,
मैं ही नष्ट करने की अधिकारी
मैं प्राचीन, नवीन मैं ही,
जीर्ण मैं, प्रवीण मैं ही,
अपना समस्त तत्व लिए
समर्पित हूँ, केवल अध्ययन के लिए।
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