तहजिब की बात यु न सरेआम कर
तमिज तूने भी छोडी थी
जरुरत थी जब तुझे क्रोध को दबाने की
जुबां की तलवार तुने तब चलाई थी
आज बारी किसी और की है
तो तुझे लहजा याद आ गया
कल जब बारी तेरी थी
लफ्जों के तीर से जान तुने ली थी
जश्न मनाया था तुने अपनी खुदगर्ज जित का
कायर कहा था किसीको तुने
किसीकी मजबुरी नजरअंदाज की थी
आज वक्त उसका आया
कल जो झुक कर गिडगिडां रही थी
सिर्फ आर्या नही थी वो थी पार्वती और दुर्गा भी
तब भी भागी नही थी और ललकार रही आज भी
@ownwords_by_pragati✍️
-