"मुझे इश्क़ है तुमसे " न कह पाया कभी
तुम्हारा न होना न सह पाया कभी
तुम्हें सिर्फ तुम्हें पाने की चाहत थी
फिर भी तुमसे दूर हो जाना चुना मैंने
न जाने कितने ज़ज़्बात रोक कर
तुम्हारा मुझपर चिल्लाना सुना मैंने
न चाहता था मेरी दुनिया सवारने को
तुम्हारी दुनिया कहीं पिछे छूट जाए
संजो रखें हैं जो तुमने ख्वाब
मेरी खातिर कहीं वो टूट जाए
न ही मेरे ज़ज़्बात तुम समझ पाती
न ही किसी और का हक़ तुमपे मैं सह पाता
तुम्हारे पूछने पर भी मैं चूप ही रहता
और कहता तो क्या "मुझे इश्क़ है तुमसे"
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