ए पुरुष,
कतपुटली नहीं ,औरत हूं मै।।
तेरी तरह ही,
एक ज़िंदा इंसान हूं मै।।
हर पल तेरी गंदी नजरो का
दंश सहती रहती हूं,
क्यू हंसती हो,क्यू गाती हो,,
ये मत पहनना , वो मत करना
यहां न जाना , जल्दी आना,,
बंधुआ नहीं हूं मै ,
अपनी मर्यादाओं का ध्यान,
हर पल रखती हूं मै।।
घर का नाम पर ,पिंजरा मत दो।
ये कैसा पुरुषत्व है तेरा,
ए पुरुष
कठपुतली नहीं औरत हूं मै।।
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