अगर कपड़े बोल पाते,
'तुझे' बेनक़ाब कर जाते।
तेरी वो मानसिकता..तेरी घटिया सोच,
सबकी परतें ख़ोल जाते।
तेरी हर एक ओछी हरकत बताते,
तेरी गन्दी नज़रों को देख..
अपनी नज़रों से ही रोते जाते।
शुक्र मना ऐ ज़ालिम,
की कपडे बोल नहीं पाते।
वरना तुझ जैसे भेड़िये,
इस समाज में टिक नहीं पाते।
- साकेत गर्ग
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