ए खुदा, ज़रा और खुदाई दे
जिस्मों कि भीड़ है बरपा, मुझे रूह कि तन्हाई दे
इस शोर में भी तू सुनाई दे
महफ़िल हो या की हो कबर, मुझे तू दिखाई दे
तेरा मुरीद तुझे दुहाई दे
झूठी अना संभाली अब तक, अब सच्ची रुसवाई दे
मेरे मुर्शिद मुझे इलाही दे
वो फानी को लाफानी कर दे, ऐसी कोई सफाई दे
मुझे मुझसे हि रिहाई दे
खुद के दर्द से रोया बोहोत, मुझे पीर कोई पराई दे
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