पहाड़ों की तलहटी से आया,
इक नन्हा कलमकार हूँ मैं।
हिमालय बनने की ख्वाहिश है,
पर अभी एक छोटा पठार हूँ मैं।
इन वादियों से बेतहाशा इश्क़ है मुझे,
जब इन वादियों से गुजरता हूँ,
तो ऐसा लगता है जैसे,
अपनी मेहबूब से गले मिल रहा हूँ।
और जब इन घाटियों की बहकती
हवाएँ मुझे छू कर गुज़रती है,
तो लगता है जैसे इक कली सा हूँ,
और बड़ी नज़ाकत से खिल रहा हूँ।
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