बहुत दूर तक चला मैंने कुछ अपने तरीके
से भी जिया लेकिन खुल कर नहीं
वहीं रुकी हूं ज्यादा आगे नहीं बढ़ी हूं मैं!
क़ैद हूं उन बन्धनो से, आज भी वही
पाबन्दियां हैं, बहुत कोशिश कि मैंने
लेकिन अपने ही रास्तों पर दूर खड़ी हूं मैं!
कई मुकाम आये, बातें मेरी चल रही थीं
मेरी जिंदगी ज्यादा दिन कि नहीं है मेहमान
तुम्हे खबर भी नहीं होगी कितना लड़ी हूं मैं!
उन उतार-चढाव से गुजर कर बहुत तन्हां हो गई
एक बार फिर कोई सांसें भर दें रुह में
चल पड़े जिंदगी फिर से कब से वहीं पड़ी हूं मैं!
सब समय पर छोड़ दिया, मन उदास रहने लगा
एक बार मेरी भी हसरतें पूरी होने कि चाहत है
चीज़ों को लेकर ना जाने कब से डरी हूं मैं !
नादानियां तो जाती नहीं और परेशानी गले लग जाती
किसी के लिए जरुरी नहीं मगर सबको जरुरत है मेरी
इतनी हैं अहमियत जैसे बस जोड़ने कि इक कड़ी हूं मैं!
-(Taste _of_thoughts✍️)
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