प्रतिपल दिल का राग समेटे, बलखाती मन की इच्छा। देनी पड़ती है हरदम, सब को बड़ी परीक्षा।। मेरे मन में जाग रही है, अगाध प्रेम की निष्ठा। मर्यादा संघ मात-पिता की, तुम प्रतिष्ठित करो प्रतिष्ठा।।
छुपी हुई है कोई खूबी, सच में तेरे अंदर। मुश्किल में हिम्मत मत खोना, जो जीता वही सिकंदर।। मन मारे क्यों बैठे हो , कर्मों का अभ्यास करो। जूझो हरदम हालातो से और बारंबार प्रयास करो।।
मन से मिन्नत मान रहे , है प्रचलन नये रिवायत की। समर्थन सहमत कि नहीं जहां, है वहां पहल शिकायत की।। संग्राम ढूंढते पहलू पर , मैं बेहतर आज तुम्ही से हूं। लम्हे जज्बात परोस रहे , मै सच में नाराज तुम्ही से हूं।।
बस आत्ममुग्ध एहसासों में, ये कैसी खींचातानी है। संवेदनहीन बने है जो वह, चाहे मन की मनमानी है।। केवल मैं बस केवल मैं , इतनी बात है तुम्हें पता। तुम शरीफों की शख्सियत, मैं गुनाहों का देवता।।