बेहद की हद
कुछ मोती बेहद प्यारे थे मुझे।
पर कल डोरी से निकल कर अपनी,
हद पार कर गए।
वो मोती जोड़ने में ज़िंदगी लगी थी मुझे।
पर कल अपना रंग बदल कर,
हद पार कर गए।
शायद डोरी कच्ची थी ,पता नहीं था मुझे।
पर कल उसे तोड़ माला बेज़ार कर,
हद पार कर गए।
उनकी चाहत उनको नहीं ,सिर्फ़ पता थी मुझे।
जौहरी कमज़ोर निकली मैं और वो,
हद पार गए।
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