Kab tak..
बिन उम्मीद ही चिराग जलाईए कब तक,
यह गम उम्र भर उठाइए कब तक,
और यह शैतानी से भरी है अभी रेहेने दो,
चेहरे से जुल्फों को हटाइए कब तक।
और वो जो चैन से सोया है एक उम्र बाद,
कब्र से उसको जगाइए कब तक,
और जिसको आना है वो कब तक आएगा,
ख्याले - यार ही लाइए कब तक,
और छोड़ कर जिसे जाना था जा चुका है,
साथ यादों से ही निभाइए कब तक।
और कब तक फ़िज़ूल करे हम ये जज्बात,
जो रूठा ही नहीं उसे मनाइए कब तक।
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