अंदर ही अंदर एक आग जल रही थी और सर पर जुनून सा सवार था जितना भी रोको ख्वाहिशें जिद पर अड़ी थी अंदर एक तूफान चल रहा था विचारों की आंधियां जोर से चल रही थीं अंदर एक समंदर हिलोरें ले रहा था जाने कैसा वक़्त था नसों में नई सी ऊर्जा दौड़ रही थी एक जंग अंदर एक जंग बाहर चल रही थी कुछ कर दिखाने की ज़िद थी सरहद पर गोलियां चल रही थी मेरे उंगलियां बंदूकों से खेल रही थी और असंख्य गोलियां मेरी तरफ अपनी राह बनाने की कोशिश कर रही थी तूफान तो हर तरफ था पर बाहर चल रही जंग से मेरे अंदर की जंग ज़्यादा मुश्किल थी दोराहे थे अगर महफूज़ जगह छीप जाता तो बच जाता पर खुद को माफ नहीं कर पाता अब एक रास्ता था जो मुझे सही लगा एक शहीद का तमगा और तिरंगे से लिपटे ताबूत में घर आना माना मैं जीवन की जंग हर गया पर मरते मरते मुझे खुद पर गर्व था अब चीर विश्राम में जाना है कई रातें जाग कर गुजरी गुज़ारिश इतनी सी है की देश सुरक्षित रहे।।।