रंगों की रंगीनियों को अहसासों में भर लेने दो,
सांसों की गर्मियों को सांसों से छूं लेने दो।।
अधरो से तेरी बरसती मदहोशीयों को,
आंखों से दिल में उतर जाने दो।।
हंसती रहो तुम सदा जी भरके,
मुझको वो हर कोशिश कर लेने दो।।
सलामत रहे तेरी मेरी ये जोड़ी,
बांहों को छोड़ों अब रुह में समां जाने दो।।
गालों पे मेरे तेरे सुकोमल छूवन को,
जमाने की नजरों से छुपा लेने दो।।
महकती रहो तुम फाल्गुन मास की जैसे,
यौवन को अपने अब खिल जाने दो।।
ये सितारे जो अपनी इतराते चमक पे,
चमकते चेहरे को अपने उन्हें देख लेने दो।।
होली की रंगत जो फिजाओं में हैं फैलीं,
अब दामन में उनको भर जाने दो।।
"सिद्धार्थ" समांए रहो तुम बांहों में उसकी,
सोएं अरमां को करवट बदल लेने दो।।
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