QUOTES ON #HTBKRT

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16 FEB 2017 AT 1:05

चपल, चंचल, चिंतामणि, जिसकी लेखनी न शर्माती ।
इलाहाबाद में बीता बचपन, जयपुर में अल्हड़ घूमें ।
पुणे में इंसान बने, परदेस में साहब हुए ।
दूर रहकर मिट्टी से थोड़ा कुछ जो सीखा,
पन्नों में ही रह जाता था सरीखा ।
कॉमिक और फिल्मों का प्यार न छूटा,
फिर एक दिन YQ का छींका फूटा ।
सोते शायर ने करवट ली ।
लेखनी फिर बोल पड़ी ।
आज कुछ महीने हो चले हैं ।
अभी भी हम तो बस कह रहे हैं ।।

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7 NOV 2016 AT 18:08

चौबे जी आज कुछ कटु अवस्था में नुक्कड़ पर आये।

नाक भौ सिकोड़े ऐसा लगा मानो कुछ बुरी घटना घटी हो।

हमने पूछा क्या हुआ तो बोले "लगता है दिल्ली ने "Make In India" को ज़्यादा ही seriously ले लिया है । तभी China की देखा देखी खुद का smog भी बना लिया ।"

अब इस बात पर हँसे की गौर करे यही सोच रहे हैं ।

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16 FEB 2017 AT 1:39

आज चौबे जी से फिर मुलाकात हुई । थोड़े तेवर बदले हुए थे । हमें लगा ये भी समाजवादी हो चले शायद । कुर्ता पायजामा तक तो ठीक था । ये नए रे बैन का फन्दा समझ से बाहर था । ऊपर से ईयरफोन कान से हट नहीं रहा सो अलग । हाइली अनलाइक चौबे जी ।
हमने पूछा "ये सब क्या है बे ?"

लगता है चौबे भी भाँप लिया मामला बोला, "तुम्हारी समझ के बाहर है । मैं जातिवाद फ़ैलाने की तैयारी कर रहा हूँ । यहाँ मुलायम मायावती सब छोटे प्लेयर हैं । आई भिल डायरेक्टली हिट सफ़ेद घर । जब डोनाल्ड डक बन सकता है तो हम क्यों नहीं । आखिर हरीश बाग़ के अव्वल दर्जे के सुपरस्टार हैं ही ।"

मैं हँस दिया, " अरे उस देश में टीटू जी नहीं हैं वोट की गिनती करने वाले !"

"भक बुड़बक ! तुम क्या जानो इम्पोर्टेंस ऑफ़ वर्ल्ड पॉलिटिक्स ! राजू ! चूना एक्स्ट्रा देना !"

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17 DEC 2016 AT 12:47

कड़ाके की ठण्ड में आजकल दुकान के चक्कर कम हो रखे थे । सुबह टहलते "उत्तानपाद" करते दो पुड़िया बंधवा कर घर आना पड़ता था । चौबे से मिले भी दिन हो गए तो सोचा आज दुपहर में निकल के देखता हूँ । क्या पता दर्शन हो जाएं ।
आखिर मिल ही गए, चौबे अपना नया स्मार्ट फोन शो ऑफ़ कर रहा था । कहें तो वो फोन खुद ही शो ऑफ हो रहा था । बार बार पंगत में उनके नोटोफिकेशन के चहचहाने की आवाज़ गूँज जाती।

शर्मा ने फिरकी ली , " क्यों चौबे ? किसके मेसज आ रहे हैं ?"

चौबे तपाक से बोला,"साला ससुराल वालों ने व्हाट्सएप्प पर एड कर दिया है । रोज़ सुबह 3 घंटे गुड मॉर्निंग मेसज आते हैं, फ़ॉर एक ही जोक तीन चार बार आता है, चारों अलग लोग भेजते हैं, फिर एक हस्बैंड वाइफ जोक, एक साली के बनाये हलवे की तस्वीर फिर किसी के मामा की लड़की की फंक्शन का फोटो, मेमोरी खा जाता है सारी, उसके बाद भी चैन न मिले तो इंस्पिरेशन के नाम पर कोई हनुमान चालीसा भेज देता है । किसी दिन अगर सिर्फ गुड मॉर्निंग और गुड नाईट मेसज आ जाएं तो खुशकिस्मत समझता हूँ खुद को ।"

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8 NOV 2016 AT 22:37

यकायक दूकान बंद होने से पहले चौबे जी भागते हुए वहां पहुँचे ।

राजू ने पूछा ,"कस बा चौबे जी ? सब ठीक ?"
वो बोले "हाँ में तुम ज़रा 500 के मीठे पान तो बांध दो ज़रा"

राजू मुस्कुराया और चुपचाप दुकान समेटने में लग गया ।

चौबे जी बोले , "ऐ बुड़बक सुनता नहीं है क्या ?"
राजू तपाक से बोला ,"सरकार सुनता हूँ न । आपकी बातें भी और रेडियो में न्यूज़ भी ।"

चौबे जी चुपचाप घर निकल लिए ।

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6 NOV 2016 AT 10:54

कल पनवाड़ी की दूकान पर चौबे जी ने इंस्टाग्राम को ले कर नए सवाल खड़े कर दिए । उनका कहना था के एक ज़माने में फोटो खींचने और डेवेलप करने में एक कला थी । एक परफेक्ट शॉट जुगाड़ना exercise in totality से अब exercise in futility हो चला है । पहले गर्दन, कंधे, घुटने, पैर सबकी exercise होती थी आज बस अंगूठे की हो कर रह जाती है । इसी के साथ उन्होंने राजू के अंगूठे का नाम ही futility रख दिया । राजू भी चार गाली दे वही अंगूठा दिखा कर निकल लिया गर्लफ्रेंड के साथ सेल्फी लेने ।

P.S. थोड़ा माइंड कीजियेगा चौबे जी कभी कभी बड़ी सुपारी खा के भावनाओ में बह जाते हैं फिर हाई स्कूल वाले essay के चंद शब्द दोहरा देते हैं । कल ही अपना iPhone दिखा कर इतरा रहे थे ।

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2 DEC 2018 AT 1:39

दिसम्बर की सर्दी में चौबे एक बार फिर अपनी मांद से बाहर निकले। काफ़ी दिन हो गए थे मिले तो हमने पूछा “कस बे चौबे कैसा है सब?”

उसने हमें एकटक देखा और बोला, “गुरु एक बात पूछनी है, आपके साथ ऐसा हुआ है क्या? आप हाथ में चाय का कप ले कर आँगन में बैठें और फिर कोई गली से आपको नमस्ते कर पधारे। फिर वो आपको कुछ ऐसा सुनाए के आप उसी में मशगूल हो जाएँ। फिर पता भी नहीं चलता आपकी चाय कब ख़त्म हो गयी। पहली चुस्की का मज़ा याद रहता है। चलिए कोई बात नहीं, कल ही तो राशन लाए थे। फिर आप आँगन से घर के अंदर जाएँगे और देखेंगे के ना चाय बची है ना चीनी। क्या है न के कहानीकार आपके पड़ोसी का चहेता था तो उसके भाई बंधू कब कहानी सुनते पधारे और कब राशन का बँटवारा कर के निकल लिए आपको पता नहीं चला। कहानी बहुत बढ़िया थी वैसे।

सुनने में अजीब लगता है न? ये पूरा साल वही चाय का कप था। बाक़ी आप तो समझदार हैं।”

हम सोच रहे थे के टिप्पणी करें लेकिन चौबे चुपचाप मिसाइल की गति से हमारे पीछे रखे पीकदान को थोड़ा कत्था समर्पित किए और चलते बने।

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28 MAR 2017 AT 6:00

गर्मियों में कुछ चीज़ें नहीं बदलती, जैसे के सर पर दुपट्टा बाँधे डाकू ज़ैल सिंह सी स्कूटी पर सवार कन्याएँ, चौबे जी का एक्ससेसिव ओवर कंपनसेशन विथ अजीब से सनग्लासेस और टोपियाँ, और बर्फ के गोले की चुस्कियाँ ।
आजकल बयार भी ऐसी थी के पान सुपारी से इतर चौबे का मूड लफंदरगिरी वाली चोंचली हरकतों में ज़्यादा था । लू से बचने को सर बाँधे हरे रंग के चश्मों में टी शर्ट और निक्कर पहने राजू के ठेले संग खड़े रहते । राजू तो डेढ़ शाणा था ही, चौबे जी की आकृति को ही अपने विज्ञापन जैसा लेता था । फ्री के गोले चौबे को मिलते और आने जाने वालों को कुछ ठहाके।
इससे पहले आप हमारे ह्यूमर लेवल को जज करें, मैं बता दूं के चौबे का इलेक्शन जीतने का सपना पूरा न हुआ लेकिन पहचान बन गयी थी मोहल्ले में । और तो और आने जाने वालों पर उनकी गहन टिप्पणियाँ भी कायम थी । आज उन्होंने जयपुर सी सी डी वाला काण्ड देखा था तो बोले,"क्या बताएं गुरु, पहले छापा हम मारते थे, उनके घर के नीचे, इंतज़ार होता था और फिर तकरार, आज तो सीधे थप्पड़ पड़ते हैं, कल इसलिए मिसेज़ चौबे से एक्स्ट्रा दाल भी नहीं माँगी खाने में, क्या पता वो भी मज़े में एक दो रसीद दें।" फिर वो घोड़े की तरह अपने रंग बिरंगे दांत निकाल के हँसने लगे।
धूप तेज़ थी, मैं बस गोले के पानी को गिरते और मिट्टी में मिलते देख रहा था। नीचे सब एक ही रंग का था।

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17 NOV 2016 AT 8:27

चौबे जी आज काफी दिनों बाद मुखातिब हुए तो हमने पूछा कहाँ थे कुछ दिनों से । असल में दिवाली बाद की न तो पंगत पूरी हुई न ही कुछ दिनों से फ्री का मीठा पान मिला तो हम अलग समस्या में थे । कभी कभी सोचते हैं के शायद चौबे जी की यूटिलिटी कोई नहीं समझता । रोज़ अपना मटके सा पेट लिए हाथ में पान की डिबिया थामे जब चौबे जी राजू की दुकान आ जाएँ समझ लीजिए महफ़िल सजने में देर नहीं । रोज़ की ख़बरों पर चर्चा और उसपर चौबे का तीखा टेक ही हमारा "बिग बॉस" और "झलक दिखला जा" है ।

राजू का कहना था के वो "सोनम गुप्ता" नाम की कन्या के लिए बड़ा दुखी हैं । 10 के नोट से लेकर 2000 तक उनका आशिक़ आज भी उन्हें बेवफा कहता आ रहा था । चौबे जी ने बस इतना कहा के असली बुड़बक तो ऊ लौंडा है जो रेजगारी की आड़ में गुप्ता जी की लड़की की बदनामी कर रहा था । अगर वो खुद होते तो सीधे घर पहुँच बतिया के आते । फिर हमने बस अपने को उनकी कॉलेज गर्लफ्रेंड का ज़िक्र करने से रोका जो आज मिसेज़ शर्मा थी । लगता है चौबे ही वो आशिक़ था जिसने ये "सोनम गुप्ता" का कर्मकांड शुरू किया था । अच्छी बात है, इसी बहाने और रायता नहीं फैला ।

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