मुद्दतों हमने एक चराग़ जलाए रखा
जलती लॉ हवाओं से बचाये रखा
शहर की तारीख़ जब लिखी गई
कोठी के जुगनू ही गिने गएं
कल जब फिर अंधेरा होगा
कल जब फिर होगा रौशन चराग़
कल फिर तारीख़ को नया एहसास होगा
ये एहसास हर बार होगा
मगर लिखा ना जाने पायेगा
चराग़ जलते जाएंगे
और फिर एक रोज़ यूँ होगा
चराग़ रौशन करने वाला लिखना सीख लेगा
फिर एक नई तारीख़ लिखी जाएगी ।
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