~अजनबी दोस्त~
जब लगी चोट थी मुझको,
तुम मिले उस वक़्त पर मुझको।
हूं थी बेबस और लाचार सी मै,
की कोई समझ ना थी मुझको।
हाथ पकड़ कर बढ़ना सिखाया,
दुनिया से तूने लड़ना सिखाया।
बिन किसी रिश्ते के रिश्ता निभाया,
एक दोस्त का मुझे मतलब बताया।
सौ अंजान में मुझे जान बनाया,
फिर से तूने एक एहसास जताया,
मेरे होने का मुझे मतलब बताया।
कुछ गलत होने पर मेरे साथ रहा तू,
तू मेरा हो कर मेरे पास रहा तू।
क्या खूबसूरत रिश्ता निभाया तूने,
एक लाश को इंसान बनाया तूने।
की अब तुम चले गए हो,
और मेरी हिम्मत भी,
जैसे मुस्कुराते चेहरे से उसकी हसीं।
खुदा मिलेगा तो मांगूंगी,
उस वक़्त को वापस चाहूंगी।
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