एक कटोरी भर मैं रात लाऊं, तुम अंजलि ख़्वाबों की भरना ज़रा
आज बालकॉनी में सितारों की एक चटाई लेना तुम बिछा,
मेरे हाथ से छटक कर क़िताब, मुझे घूर लेना इक बार ज़रा,
फ़िर हाथ मेरा लंबा करके, बाँह पे अपना सर देना टिका,
जब खेलूँ तुम्हारी बाली से तो उँगली से होंठ छेड़ दूँ ज़रा,
तुम शर्मा कर चेहरा अपना, मेरी छाती में लेना दबा,
बस भर के तुमको गिरफ़्त में, हाथों की लूँ ज़ंजीर बना,
चूम के पेशानी को तुम्हारी, हल्का सा दूँ मैं भी मुस्कुरा
तुम भांप के शरारत भरी मुस्कान, छुड़ाने लगो ख़ुद को ज़रा
आँखों में हरारत भरके मैं, देखूँ अब तुम्हे यूँ एक दफ़ा,
नैनों के अपने आँचल तले, तुम हया की लोरी देना सुना
मैं भी ज़रा जी भरके आज, हिमाकतें अपनी लूँ आज़मा,
एक हाथ बढ़ा कर आसमान को, चाँद का सूरज दूँ बुझा,
तुम मीच करके आँखें अपनी, मेरी रात जला देना ज़रा।
-