शहर मेरा आज गांव लगने लगा,
लड़ते थे जिस पड़ोसी से हम,
आज मुझे अपना लगने लगा।
सुनसान है सड़क,
ना कोई गाड़ी , ना कोई शोर ...,।
जगता हूं रोज सुनकर ,
पंछियों की मधुर बोल....,।
पंछियों को उड़ता देख,
गगन को चूमने का दिल करता है।
कुत्तों को खेलता देख,
आजाद होने को मन मचलता है।
मानो हो कोई त्यौहार,
एकत्रित होकर सपरिवार।
फिर एक बार ,
शहर मेरा आज गांव लगने लगा।
- Pk Singh Prayatna Kunj😶😶😶😶
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