26 FEB 2017 AT 13:02

वो जो दिल्ली शहर था
महफ़िल से कम तो न था
मगर जब बात मोहब्बत पर आयी
निभाने में पीछे न हट पाया
जानता था की अब मुलाकात मुश्किल है
फिर भी रोज़ एक नया बहाना दे कर
बस क़रीब बुलाना चाहता था
पर अब हर मोहब्बत कहाँ मुकम्मल होती है
और जो मुकम्मल हो जाये
वो भला मोहब्बत ही कैसी

- क़तरा