20 APR 2017 AT 11:30

मेरी मयस्सरों में
बिकती है आज़ादी
तो तेरी बच जाये
ये आबरू क्या है

साज़िशों में भी
खनकती है रंजिशें
जो आप में भी न रहा
तो तू क्या है

इंतकाम से भी
अब आती है बू
जब साफ़ी है सब
ये जुस्तजू क्या है

राज़दानों से भी
अब है हया थोड़ी
बेजान ज़िन्दगी में
रंग-ओ-बू क्या है

- सौरभ