कभी जिसने आधी रात को उठ
कपकपाते बदन पर कम्बल ओढ़ाया था
आज जाती हुई ठण्ड को देख उसे कहते हो
माँ, छोड़ो तुम नहीं जानती!
कभी जिसने एक एक शब्द का मोल
बार बार लगातार बताकर समझाया था
आज चैटिंग के ज़माने में उसे कहते हो
माँ, छोड़ो तुम नहीं जानती!
कभी जिसने हर बाधा के सामने
खड़े रह, डटकर लड़ना सिखाया था
आज पर्वत चढ़ जाने के नाम पे उसे कहते हो
माँ, छोड़ो तुम नहीं जानती!
कभी साथ जो छोड़ जाएगी
तो आँसू भी साथ न देंगे तुम्हारा
तब किसे फटकार कर कह पाओगे
माँ, छोड़ो तुम नहीं जानती!
- सौRभ
- सौरभ