19 APR 2017 AT 0:47

जो तू सोचता है
कि इश्क़ है तेरा ग़ालिब सा
क्या तुझे लगता है
कि इश्क़ आसान है इतना
ग़ालिब सी ख़ुमारी में
जो तू महताब को देखता है
सोचना मत कि है ग़ालिब आसान
हज़ार रातें उसने भी
अकेले में बिताई हैं!

जो मुकम्मल हो गयी
तूने इश्क़ का नाम दिया
चाहत थी वो सही
इश्क़ तो नही था
जो मुकम्मल हो जाए
वो तो इश्क़ कहाँ
इश्क़ तो हमेशा अधूरा रह जाता है!

हर राज़ में दफ़्न
एक आरज़ू ही सही
मगर टटोल कर देखा तो जाये
कि अंदर क्या है
जो राज़ न सिमटी
तो दिल का क्या होगा
टूटता बिखरता तो है ही
उन्स की तलाश में और कहाँ गिरेगा!

- सौरभ