25 FEB 2017 AT 8:29

जाती हुई ठण्ड कुछ बातें छोड़ जाती है। बातें उन सर्द रातों की, जब हम एक ही कम्बल के नीचे अपनी ठिठुरन छिपाने को, एक दूसरे से लिपट कर बेसुध से पड़े रहा करते थे। उन शुष्क शामों की बातें, जिनका मोल ही असीम सा प्रतीत हो रहा है। हम एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल, ठण्ड का एहसास कुछ कम किया करते थे। अब आँखें तो हैं, लेकिन उनकी वो तपिश नहीं, जो गर्माहट दे सके कुछ। अब ठिठुर जाता है ये दिल, कुछ बंद कमरे में लौ जलाकर। जान गया है शायद ये भी, की मीठी गर्मी नहीं मिलेगी अब इसे। बस अब आखिरी बार जाती हुई ठण्ड को देख याद करता हूँ, तुम, मैं और हमारे सुकून को।

- सौRभ

- सौरभ