एक सुस्त पीली दोपहर खाली सी
मेरी देह की तरह......
आत्मा, दिमाग और देह के द्वन्द में
देह की ख्वाहिशें जीत जाती है......
देह को ख्वाहिशों की देहरी से दूर रख भी दूँ,
पर उस नदी का क्या जो देह बन चुकी।
एक गर्म खौलता मंत्रोचारित सूरज नदी में डूब रहा है......
नदी वरदान देने वाली देवी बन चुकी,
जो खालीपन से भरी है!
सोनिया
- सोनिया