Sohan Chauhan   (Sohan Chauhan)
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Joined 2 May 2017


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Joined 2 May 2017
27 MAY 2019 AT 18:37

यामिनी देखती है

रूठ जाता
त्यौहार पे घर न आता
दिवाली का
शशांक

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2 MAY 2019 AT 1:08

तू रंग देखे
रूप देखे

जो दिखे
बस वो देखे

कहे उसे
औरत
आदमी

पर क्या देखे उसे
जो है
तेरी देखने की हद से उपर

जो है
पर नहीं है

औरत
आदमी

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24 MAR 2019 AT 2:33

नज़्म कोई गहरी लिख दूँ क्या?
फिर गूँगी बहरी लिख दूँ क्या?

रातों का अँधेरा मैं लिख दूँ
भरी दोपहरी लिख दूँ क्या?

भोले का उपवास मैं लिख दूँ
रोज़े की सहरी लिख दूँ क्या?

गाँव की कच्ची मेंड़ मैं लिख दूँ
सड़कें ये शहरी लिख दूँ क्या?

मजनू लैला को मैं लिख दूँ
कोर्ट कचहरी लिख दूँ क्या?

भागी-भागी धड़कन लिख दूँ
साँसे ये ठहरी लिख दूँ क्या?

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21 MAR 2019 AT 20:38

जवाब है हर सवाल का।

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19 MAR 2019 AT 1:08

लिखने के लिए पढ़ना ज़रूरी है।
उगने के लिए गड़ना ज़रूरी है।

बेताब है बहुत फूल-सा खिलने को,
लेकिन खाद-सा सड़ना ज़रूरी है।

लड़ ले इस जहाँ में चाहे जिस-जिस से,
सुकून के लिए खुद से लड़ना ज़रूरी है।

जो चाहिए बहार सचमुच ज़िन्दगी में,
तो पहले पतझड़-सा झड़ना ज़रूरी है।

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14 MAR 2019 AT 11:46

........

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13 MAR 2019 AT 1:03

वक़्त फ़िज़ूल तुमने कभी गँवाया ही नहीं
जीने का ढंग तुम्हें कभी आया ही नहीं।

दुनियादारी में डुबाया है हर पल ख़ुदको
इश्क़ का रंग तुम पे कभी छाया ही नहीं।

पेट से चीखे हो कभी गले से चीखे हो
दिल से तुमने कभी गाया ही नहीं।

हर साँस में माँगा है तुमने चाहा है छीना है
देने का सुख तो तुमने कभी पाया ही नहीं।

भागा है लेके दिल तुम्हें दुनिया जहाँ में
ख़ुद से तुम्हें इसने कभी मिलवाया ही नहीं।

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12 MAR 2019 AT 21:55

उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन 
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में 

-बहादुर शाह ज़फर

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12 MAR 2019 AT 14:37

कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है 
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है

- वसीम बरेलवी

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12 MAR 2019 AT 1:00

बेदिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे

-जॉन एलिया

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