ये वक्त भी गुज़र जाएगा,
सब्र कर!
तुझे जो सुनाई दे रही है वो आहट,
ज़रा गौर से सुन तो सही,
बस ये दस्तक तेरी मुस्कान लाएगा।
तू सब्र रख!
ये तो पूस की रात है, अमावस की नहीं।
चिंगारी की ज़रूरत है, तेरे खून में तप रही वो गर्माहट है।
थम तो बिल्कुल नहीं पर मुस्कुरा तो दे ज़रा,
उस मुठ्ठी को खोल तू जिस मुठ्ठी में तेरी किस्मत का घड़ा है भरा।
ढीट बन जा और बस अब उस आहट को सुन,
ज़रा गौर से, जो तेरी सुकून का पिटारा है।
ये मेहनत, तेरी मेहनत एक दिन तुझे पूर्णिमा की रोशनी की सैर भी कराएगा!
धूप ही तो है, तलवे तपेंगे नहीं तो गति कहां से लाएगा!
टटोल ज़रा खुद की काबिलीयत को तू,
खुद को निखारने की श्रमता भी है तुझमें।
बस तू सब्र रख!
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