23 APR 2017 AT 16:45

शाम को यहां महफ़िल सज जाती है
फिर तुकबंदी ही कुछ बीती बाते बुन जाती है
किसी की मोहब्बत तो किसी की शादी,
किसी की बीवी तो किसी के बच्चें,
किसी की नौकरी तो किसी की जेंब खाली,

इन सब में मेरी बारी तो कभी नहीं आती
फिर ना जाने क्यों अल्फाज यू बहे चले आते,
क्यों इन सब के अश्क में डूबे मदहोश जज्बात
मेरी कलम का मरहम चहाते,
कमबख्त! ये मदिरा आज फिर
कोई रूठा कारवां बयां कर जाएगी
और रात को फिर नीदं नहीं आएगी...

- shrivardhan