नेता जी बेकरार शायराना अंदाज़ के थे, हर कथन को धुमा फिरा कर कहा करते थे और इसका फायदा ये कि लोगों को बहुत ध्यान से सुनना पड़ता था, उन्हें। तो कुछ यू कहते है कि,
दफना दिया जाऐगा उसे जो बीच मे आऐगा
रात होगी अंधेरी जब, होगी ना किसी को भी खबर तब,
सत्ता है बाबू ये कोई खेल साधारण नही,
पूरा ध्यान दोगे अपना इन शब्दो पे
तब समझोगे इनका-उनसे मेल है क्या
आकांक्षा तेरी खा जाऐगा पास बैठा कबूतऱ
दूर बैठे भेड़िये से आ रही होगी गंद तुझे,
फायदा वो इसी का उठाऐगा...
शोर मचेगा और हल्ला होगा,
वो भेड़िया भी फिर किसी से कम थोडी ना होगा
बदनाम करा तुमने उसको सरे आम
राख करने आऐंगे सब कुछ तेरा,
इलजाम होगा इसका तुझपे,कबूतऱ तो ठहरा गुंगा तुम सब मे
तब तोता मैनां सब रोकेंगे उस भेड़िये को मगर
कबूतऱ तो बेचारा सादगी का मारा
अश्क कुछ गिराएगा,तेरे दिल को पिघलाएगा
मुलायम होंगे ज्जबात जब ये तेरे,
अपनी ईर्षा का हतोडा दे मारेगा
और दिल पे तेरे राज़ करता जाएगा...
ये उस समर की सुरुआत थी जिसमे अब हम सब भागिदार है,
हर दिन कोई ना कोई एक जंग लड
अपने घर आता है जिसका किसीको इलम़ भी नही...
- shrivardhan