कुछ साल पहले आई थी मै इधर और तब से कुछ नही बदला है, वही राते और वही सुबह और फिर वही राते यही चलता आया है पिछले 9-10 सालो से,
सब कहते है की मेरे पिता भी थे साथ जब हम कोल्कता आये थे,मगर फिर वो बिन बताए एक दिन मॉ को छोड कर चले गये, ना तो मॉ के पास रुपया था ना ही कोई जीवन व्यापन का साधन,तब रूपा दीदी ने ही मॉ की मद्द की थी पूरे 2 माह हम उन्के संग रहे थे,कहते है सब,
भारत घूमने आया था तेरा पिता और तेरी मॉ को घुमा गया,तब तू हुई थी फिरंगी...
आज जब रूपा दीदी ने मेरी तारीफ की थी तो दिल इतरानए को तो करता है,मगर क्या करे यहा
एसा कुछ नही चलता है, कौन जाने किस के मन मे क्या पनप्ता है..
उमर मॉ की हो आई है कहा था एसा उन्होने ही इशारा था मेरे यौवन पे उनका,
“नौश फऱमान निक्लेगा मेरा,बिकने को तैयार शृंगार करे खडा होगा जिस्म मेरा,
मन मैला है,एसा नही कुछ होता जब गिद़ करे शिकार तो, क्यो हो उसका जिसका हुआ शिकार,
मॉ के संग चाट चुके हैे उंगलियां अपनी वो,कई बार,
कुछ ऊब गये, कुछ खूब कहे, रात मे बस कुछ पल वो गुजा़र उसको वो छिनाल कहे,वो विचारो के बीमार”
जब आपकी कोई तारीफ करता है, तो क्या आप भी यही सब सोचती है,इतना विचार करती है,उसने एसा क्यो कहा होगा? क्या आज रात वो फिर आऐगा?
नही-ना तो आप बेहद खुशनसीब हो,
हमतो ठहरे तवायफ जनाब,हम कहा इतने नसीब वाले!!
- shrivardhan