जब ताकत में चूर आदमी रूपए हांक कर अपनी अना भड़काता है। उस चकाचौंध में ख़ाख उड़ने भेड़िए पहुंचते है । कुछ खूंखार तो कुछ मंद बुद्धि, कुछ अब तक किसी को न दबोच पाने वाले, मासूम।
पेट के कुएं से चिंघाड़ता वो आदमी, लगातार उस भीड़ पर हुकूमत कसने की कोशिश करता है।
क्यों की वो जनता है, भेड़चाल में भगदड़ मचते देर नहीं लगती।