आज होली के त्यौहार पर,
हम सब मस्ती में डूबे है अपने परिवार के संग।
और वहीं दूसरी ओर है पुलिस वाले,
और हमारी सेना के जवान,
जो आज भी तैनात है हमारी खातिर ड्यूटी पर,
छोड़के अपने घर वालों को,
छोड़कर त्यौहार की मस्ती और उल्लास को।
सोचती हूँ जब उनके बारे में,
आंखें नम हो जाती है मेरी।
इंसान ने की है जितनी प्रगति,
इंसानियत गयी है उतनी ही पिछड़।
तभी तो जहां कुछ लोगों के जीवन में है त्यौहार का उल्लास,
वहीँ कुछ लोगों के है मन उदास और हताश।
इस प्रगतिशील सभ्यता से अच्छे शायद हम खानाबदोश ही थे,
जब न जरुरत थी पुलिस की न सेना की,
जब हम सब थे एक बराबर आज़ाद।
काश हम बना पाते फिर से
एक ऐसा समाज, एक ऐसी दुनिया
जहां सब मना पाते
एक समान खुशियां होकर निर्भय।

- शिखा अनुराग